Gudi Padwa – गुड़ी पड़वा पर्व के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

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Gudi Padwa - गुड़ी पड़वा पर्व के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

Gudi Padwa: गुड़ी पड़वा पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नव संवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। जिस दिन चैत्र नवरात्रि शुरुआत होती है उस दिन को गुड़ी पडवा के नाम से जाना जाता है। Gudi Padwa festival का हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व है। गुड़ी का अर्थ है झंडा और प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी स्नान कर विजय के प्रतीक के रूप में घर में सुंदर गुड़ी लगाती है। और गुड़ी की पूजा करती है।

आधिकारिक नामगुड़ी पड़वा
अनुयायीहिंदू धर्म
गुड़ी पड़वागुड़ी का अर्थ विजय पताका और पड़वा का प्रतिपदा तिथि है।
गुड़ी पड़वा पर्व पर सजावट मुख्य द्वार को आम के पत्तों से बनाया जाता है।
लाभखाली पेट पूरनपोली खाने से चर्म रोग की समस्या दूर होती है।
Gudi Padwa in hindi

ऐसा माना जाता है कि ऐसे करने से उनकी नकारात्मक सोच दूर होती है। और अपने घर में सुख शांति रहती है। मुख्यतः यह त्यौहार कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र आदि राज्यों में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा पर स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। गुड़ी पड़वा के दिन खीर ,पूरन पोली आदि पकवान बनाए जाते हैं। इस त्योहार पर कहा जाता है कि खाली पेट पूरनपोली खाने से चर्म रोग की समस्या दूर होती है।

गुड़ी पड़वा का अर्थ –

चंद्रमा के चरण के पहले दिन को गुड़ी पड़वा बनाया जाता है। Gudi Padwa के बाद रबी की फसल काटी जाती है। गुड़ी पड़वा वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है। Gudi Padwa शब्द में गुड़ी का अर्थ विजय पताका और पड़वा का प्रतिपदा तिथि है। गुड़ी पड़वा के त्योहार पर विजय प्रतीक के रूप में गुड़ी सजाई जाती है। विद्वानों की माने तो इस दिन गुड़ी सजाने सभी के घरों में खुशहाली बनी रहती है यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

Gudi Padwa की कथा –

दक्षिण भारत में Gudi Padwa का त्योहार काफी महत्वपूर्ण है पौराणिक मान्यता है कि सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था। जब भगवान श्रीराम को पता चला कि लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो उनकी तलाश करते हुए जब वह दक्षिण भारत पहुंचे तो यहां उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम को बालि के अपराधों से अवगत कराया। और उनकी सहायता मांगी। सुग्रीव की दुख भरी वेथा सुन भगवान श्रीराम ने बाली का वध कर दिया और दक्षिण भारत के लोगों को बाली के अपराधों से मुक्त कराया। माना जाता है कि तब बाली का वध किया वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा था। इस कारण इस दिन गुड़ि यानी विजय पताका बहराइच फहराई जाती है।

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Gudi Padwa festival का महत्व –

Gudi Padwa को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रूपों में दर्शाया गया है। बहुत सारी जगहों पर इस नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। और एक माना जाता है कि उस दिन ब्रह्मांड के रचयिता श्री ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। वही महाराष्ट्र में उसे मारने का कारण यह है कि मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध में विजय हुई थी।

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माना जाता है कि महाराष्ट्र में शिवाजी की विजय के बाद ही गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। Gudi Padwa festival को रबी की फसल कटाई का प्रतीक भी माना जाता है। कई विद्वानों का मानना है कि इस दिन भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापसी की थी इसलिए यह पर्व विजय का प्रतीक है।

गुड़ी पड़वा त्योहार पर सजावट –

गुड़ी पड़वा पर्व पर लोग घरों की सफाई करते हैं। और घर के मेन दरवाजे पर रंगोली बनाते हैं।

Gudi Padwa festival पर घर के मुख्य द्वार को आम के पत्तों से बनाया जाता है।

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गुड़ी पर्व क्यों मनाया जाता है?

धार्मिक मान्यता के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ही जगतपिता ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना का कार्य आरंभ किया था और सतयुग की शुरुआत इसी दिन से हुई थी। यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन या युगादि तिथि भी कहते हैं। इस दिन नवरात्रि घटस्थापन,ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि किया जाता है

Gudi Padwa मतलब क्या होता है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल प्रतिपदा को Gudi Padwa कहते हैं।
इस दिन से हिन्दू नव वर्ष आरंभ होता है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका।
कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था।

Gudi Padwa कब से शुरू हुआ?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र महीने के पहले दिन को Gudi Padwa के रूप में मनाया जाता है, जब किसान रबी फसलों को काटते हैं और इसे हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानते हैं। यह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के नाम से भी काफी लोकप्रिय है। प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 12 अप्रैल 2021 दिन सोमवार की सुबह 08 बजे से

गुड़ी पड़वा किसका प्रतीक है?

गुड़ी पड़वा रबी फसलों की कटाई का प्रतीक है। कई लोग इसे अयोध्या में भगवान राम के राज्याभिषेक के दिन के रूप में भी मनाते हैं, जब वह दुष्ट रावण से युद्ध करके और युद्ध जीतकर लौटे थे।

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