Kumbh Mela: कुंभ मेला हिंदू धर्म में मनाए जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जिसमें भारत के लोग कुंभ पर्व स्थल प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में एकत्रित होते हैं तथा नदी में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर 12 वर्ष तथा प्रयाग में 2 कुंभ पर्व के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्ध कुंभ का भी आयोजन किया जाता है वर्ष 2013 में कुंभ प्रयाग में आयोजित हुआ था तथा फिर 2019 में प्रयाग में अर्ध कुंभ मेले का आयोजन हुआ था। मेला प्रत्येक तीन वर्षो के बाद नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है। इलाहाबाद में संगम के तट पर होने वाला आयोजन सबसे भव्य और पवित्र माना जाता है। इस मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है।
आधिकारिक नाम | Kumbh Mela |
अनुयायी | भारतीय |
धर्म | हिन्दू धर्म |
पर्व का महत्व | यह एक तीर्थ यात्रा है जिसे भक्त अपने पिछले पापों को धोने की आशा में लेते हैं । |
तिथि | प्रयाग में 2 कुंभ पर्व के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्ध कुंभ का भी आयोजन किया जाता है |
उद्देश्य | संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है। |
ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है।
कुंभ के बारे में पौराणिक कथा (Kumbh Mela in hindi):-
आज के आधुनिक इलाहाबाद में स्थित प्रयाग का बतौर तीर्थ हिन्दुओं में एक महत्वपूर्ण स्थान है। परंपरागत तौर पर नदियों का मिलन बेहद पवित्र माना जाता है, लेकिन संगम का मिलन बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत मिलन होता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु अमृत से भरा कुंभ (बर्तन) लेकर जा रहे थें कि असुरों से छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदें गिर गई थीं। यह बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन रुपी तीर्थस्थानों में गिरीं। तीर्थ वह स्थान होता है जहां कोई भक्त इस नश्वर संसार से मोक्ष को प्राप्त होता है। ऐसे में जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरी वहां तीन-तीन साल के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है। इन तीर्थों में भी संगम को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है। संगम में हर बारह साल पर कुंभ का आयोजन होता है।

कुंभ मेला की उत्पत्ति –
कुंभ के उत्पत्ति के बारे में यह कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई मानी जाती है जिसके अनुसार जब महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र और देवता शक्तिहीन हो गए थे और उनकी इस दुर्बलता का फायदा उठाते हुए राक्षसों ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया था तथा देवताओं को पराजित करके उन्हें स्वर्ग लोक से निष्कासित कर दिया था। तब इंदर भगवान सहित सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर उन्हें यह व्यथा बताई। इस पर भगवान विष्णु ने इंद्र से कहा कि वे दैत्यों से संधि कर ले और उनके साथ मिलकर समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त कर उसका पान करे जिससे वह अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर लेगें। समुद्र मंथन के पश्चात अमृत निकलते ही देवताओं के इशारे पर भगवान के इंद्र पुत्र अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ गये।
तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पाकर राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया और काफी मेहनत के बाद उन्हें रास्ते में पकड़ लिया और इसके पश्चात अमृत कशल को पाने के लिए दैत्यों और देवों में 12 दिनों तक संघर्ष होता रहा। उस वक्त देवताओं और दावनों के आपसी युद्ध में अमृत कलश की चार बूंदें पृथ्वी पर भी गिरी थी। अमृत की पहली बूंद प्रयाग में गिरी, दूसरी बूंद हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन में तथा चौथी बूंद नासिक में गिरी। यहीं कारण है कि इन चार स्थलों में कुंभ का यह पवित्र पर्व मनाया जाता है क्योंकि देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के बराबर होते हैं इसलिए कुंभ का यह पवित्र पर्व 12 वर्ष के अंतराल पर मनाया जाता है।
उपसंहार (Kumbh Mela in hindi)-
ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ मेले के दिनों में ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती हुई गंगा के किनारे पर स्थित एक पौड़ी नामक स्थान पर गंगाजल को औषधि कृत करती है तथा उन दिनों यह अमृत मय हो जाती है यही कारण है कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु लाखों लोग पवित्र स्नान करने इस स्थान पर आते हैं आध्यात्मिक दृष्टि से अर्द्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट मानी जाती है हालांकि सभी हिंदू त्यौहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ ही मनाए जाते हैं।
People also ask about Kumbh Mela –
कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में हर 3 साल के अंतराल पर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में क्रमश: होता है। हरिद्वार में गंगा के तट पर, उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर, नासिक में गोदावरी नदी के तट पर और प्रयागरात में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर कुंभ मेले का अयोजन होता है।
यह घटना एक हिंदू कहानी की याद दिलाती है जिसमें भगवान विष्णु को अमरत्व के अमृत से युक्त एक सुनहरे घड़े पर कब्जा करने के लिए राक्षसों के साथ लड़ाई का वर्णन किया गया है। युद्ध के दौरान कुछ बूंदें धरती पर गिरीं। छोटे Kumbh Mela उत्सव उन स्थानों पर अधिक बार आयोजित किए जाते हैं जहां परंपरा कहती है कि वे बूंदें गिरीं।
प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने माघ मेला–2023 के लिए स्नान पर्व की तिथियों की घोषणा कर दी है। इस बार पहला स्नान पर्व पौष पूर्णिमा, 6 जनवरी 2023 को होगा।
Kumbh Mela सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक है जो हर तीन साल में मनाया जाता है।
यह एक तीर्थ यात्रा है जिसे भक्त अपने पिछले पापों को धोने की आशा में लेते हैं ।
कुंभ मेले में सबसे बड़ी सभा होती है क्योंकि देश भर से लाखों श्रद्धालु आते हैं।