lohri: लोहड़ी उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार मकर सक्रांति से 1 दिन पहले मनाया जाता है। मकर सक्रांति की पूर्व रात्रि पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। इस त्योहार पर रात्रि में मैदान में परिवार व आस पड़ोस के लोग आग का घेरा बनाकर चारों तरफ बैठते हैं। इस त्यौहार पर रेवड़ी मूंगफली मावा आदि पकवान खाए जाते हैं
अन्य नाम | लाल लोई |
अनुयायी | उत्तर भारत के लोग: पंजाब, डोगरा, हरियाणवी और हिमाचलियों द्वारा पंजाब, जम्मू, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश |
प्रकार | धार्मिक, सांस्कृतिक |
उद्देश्य | मध्य सर्दियों का त्योहार, शीतकालीन संक्रांति का उत्सव |
उत्सव | अलाव, गीत (भांगड़ा और गिद्दा) |
आवृत्ति | साल में एक बार |
समान पर्व | होली,दीपावली |
परिचय (lohri in 2023)-
lohri की परंपराओं और रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि लोहड़ी का संबंध प्रागैतिहासिक गाथाओं से था। दक्ष प्रजापति की पुत्री सत के अग्नि दहन की याद में यह अग्नि जलाई जाती है। जिस परिवार में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है उनसे पैसे लेकर मोहल्ले या गांव भर में बच्चों को बराबर – बराबर रेवड़ी बांटते हैं। lohri के दिन या उससे दो-चार दिन पहले बालक बालिका है बाजारों में जाकर दुकानदारों से पैसे मांगते हैं इनसे लकड़ी व रेवड़ी खरीद के सामने की लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं।

लोहड़ी त्यौहार को क्यों मनाया जाता है-
पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में हर वर्ष याद करके मनाया जाता है। जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जमाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था उसी दिन को एक पश्चाताप के रुप में प्रतिवर्ष lohri के रूप में मनाया जाता है।
lohri के पीछे एक ऐतिहासिक कथा है जिसे दुल्ला भट्टी की कथा के नाम से जाना जाता है।
दुल्ला भट्टी की कथा –
दुल्ला भट्टी पंजाब प्रांत का एक सरदार था ,जिसे पंजाब का नायक कहा जाता था। उन दिनों संदलबार नामक एक स्थान था, जो अब पाकिस्तान में है। वहां पर लड़कियों को बाजार में बेचा जाता था। दुल्ला भट्टी ने इस प्रथा का विरोध किया और लड़कियों को सम्मान पूर्वक दुष्कर्म से बचाया और उनकी शादी करवा कर उन्हें सम्मानित जीवन दिया| इसलिए इस दिन को lohri के गीतों में गाया जाता है| और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता है। इन्हीं ऐतिहासिक कारणों के कारण पंजाब में लोहड़ी का उत्सव खुशी के साथ मनाया जाता है।
lohri का त्यौहार कैसे मनाया जाता है –
पंजाब का यह विशेष त्योहार lohri जिसे धूमधाम से मनाते हैं ,इसमें नाच गाना और ढोल बजाते हैं। ढोल को पंजाबियों की शान कहां जाता है और इसके बिना इनके त्योहार अधूरे हैं। lohri के त्यौहार की उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं है जो कि पंजाब के त्योहार से जुड़ी हुई मानी जाती है। लोहड़ी का त्योहार पंजाब हरियाणा का प्रमुख त्योहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार मकर सक्रांति से 1 दिन पहले 13 जनवरी को मनाया जाता है। वर्तमान समय में लोहड़ी का त्यौहार बंगाल और उड़ीसा में भी मनाया जा रहा है।
नए साल के रूप में (lohri in hindi)-
किसान इन दिनों बहुत हर्षोल्लास के साथ अपनी फसल घर लाते हैं।
lohri को पंजाब में किसान नए साल के रूप में मनाते हैं।
आज लोहड़ी के जश्ने ने पार्टियों का रूप ले लिया है|
और एक दूसरे के गले मिलने के बजाय इंटरनेट के जरिए एक दूसरे को बधाई देते हैं।
लोहड़ी पर विशेष रुप से लोग सरसों का साग मक्के की रोटी बनाते हैं जिसे खाते हैं
और अपनों को प्यार से खिलाते हैं।
People also ask About lohri –
दरअसल दुल्ला भट्टी गरीब लोगों की मदद करता था। एक बार उन्होंने दो अनाथ बहनों को उनके चाचा से बचाया था, जिसने उनको जमीदारों को बेच दिया था। दुल्ला भट्टी ने lohri की रात दोनों बहनों की शादी करवा दी और एक सेर शक्कर उनकी झोली में डालकर विदाई कर दी। मान्यता है कि इस घटना के कारण भी लोग लोहड़ी का पर्व मनाते हैं।
लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगो का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोलाससे मनाया जाता हैं। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता हैं।
पारंपरिक तौर पर lohri फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा त्योहार है। पंजाबियों के लिए लोहड़ी इसलिए भी खास है क्योंकि इसके अगले दिन नई साल की पहली सुबह होती है। इसको बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन फसलों की पूजा की जाती है और गन्ने की फसल की कटाई की जाती है।
lohri शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है ल से लकड़ी, ओह से गोहा यानि जलते हुए उपले व ड़ी से रेवड़ी. लोहड़ी को लाल लाही, लोहिता व खिचड़वार नाम से भी जाना जाता है. सिन्धी समाज भी इसे लाल लाही पर्व के रूप में मनाया जाता है. लोहड़ी की लोह मतलब अग्नि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में जलाई जाती है.
रोड़ी, गुड़ और रोटी से मिलकर बना पकवान है। लोहड़ी के दिन तिल और गुड़ खाने और आपस में बांटने की परंपरा है। ये त्योहार दुल्ला भट्टी और माता सती की कहानी से जुड़ा है। मान्यता है इस दिन ही प्रजापति दक्ष के यज्ञ में माता सती ने आत्मदाह किया था।