Ratha Yatra: इस त्यौहार को भारत के उड़ीसा राज्य में मनाया जाता है। भारत के शुभ प्रसिद्ध तीर्थ धाम जगन्नाथ पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ माह की द्वितीया शुक्ल पक्ष में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। यहां पर वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा जी और श्री कृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक खुद श्री जगन्नाथ जी है। यह पर्व पूरी का प्रधान पर्व है इसमें भाग लेने के लिए बहुत दूर दूर से लोग आते हैं।
आधिकारिक नाम | जगन्नाथ रथ यात्रा |
अनुष्ठान | श्री जगन्नाथ जी |
प्रकार | हिन्दू धर्म |
आवृत्ति | वार्षिक |
अनुयायी | भारतीय, उड़ीसा |
तिथि | प्रतिवर्ष आषाढ़ माह की द्वितीया शुक्ल पक्ष |
माना जाता है कि इस दिन जगन्नाथ जी मंदिर से निकलकर गुड़िचा के मंदिर में विश्राम करने जाते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन वापस आते हैं। लोक देव के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भ्रमण पर निकलते हैं इस दिन लोग दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं तथा संकट निवारण की इच्छा भी रखते हैं। सबसे आगे बलभद्र जी की मूर्ति का रथ चलता है जिसे ताल ध्वज भी करते हैं। फिर सुभद्रा जी की मूर्ति रथ होता है। जिसे पद्म रथ कहते हैं। श्री कृष्ण के मूर्ति के रथ को नंदीघोष कहते हैं।
Navaratri – नवरात्रि के बारे में संपूर्ण जानकारी
जगन्नाथ मंदिर से Ratha Yatra शुरू होकर पूरी नगर से गुजरते हुए यह रथ यात्रा गुडीचा मंदिर पहुंचती है। यहां पर भगवान जगन्नाथ बलभद्र वह देवी सुभद्रा के लिए विश्राम करते हैं। गुड़ीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को आडप- दर्शन का जाता है आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुन मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रत्नों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुडा यात्रा करते हैं।
Table of Contents
Ratha Yatra की धार्मिक मान्यता –
इस Ratha Yatra को लेकर धार्मिक मान्यता है कि एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाई श्री कृष्ण और बलराम से नगर को देखने की इच्छा जताई। फिर श्री कृष्णा और बलराम ने अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के लिए भव्य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर नगर को देखने के लिए निकले। इस मान्यता को मानते हुए हर साल पूरी में जगन्नाथ Ratha Yatra आयोजित होती है। Ratha Yatra की शुरुआत होने के 15 दिन पहले जेष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को 108 गड़े पानी से नहलाया जाता है। भगवान जगन्नाथ को जिस कुएं के पानी से नहलाया जाता है उस कुए को 1 साल के लिए बंद कर दिया जाता है। वापस भगवान जगन्नाथ को उसी कुए के पानी से नहीं लाया जाता है।
पर्व में नीम की लकड़ी का उपयोग –
भगवान जगन्नाथ के साथ बलराम जी और बहन सुभद्रा जी की मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनाई जाती है।
नीम की लकड़ी को भगवान की त्वचा रंग के अनुसार चुना जाता है।
जिस प्रकार भगवान जगन्नाथ का रंग सावला है तो नीम की लकड़ी गहरी चुनी जाती है।
और बलराम जी वह बहन सुभद्रा के गोरे रंग के लिए हल्के रंग की लकड़ी कितनी जाती है।

Ratha Yatra की कथा –
देव ऋषि नारद को वरदान-
Ratha Yatra में भगवान कृष्ण के साथ राधा रुकमणी नहीं होती बल्कि उनके भाई बलराम व उनकी बहन सुभद्रा होते हैं। द्वारका में श्री कृष्णा रुकमणी के साथ शयन करते हुए रात्रि निंद्रा में अचानक राधे राधे बोलते हैं। तब महारानियों को आश्चर्य हुआ तो जागने पर श्री कृष्ण ने अपना मनोभाव प्रकट नहीं होने दिया। तब रानी रुक्मणी ने अन्य रानियों से वार्ता की तो पता चला कि वृंदावन में राधा नाम की एक गोप कुमारी है जिसको श्री कृष्ण ने अभी तक भूलाया नहीं है।
राधा जी की श्री कृष्ण के साथ रहस्यमई रासलीला के बारे में माता रोहिणी को पता था। इस बात की जानकारी प्राप्त करने के लिए सभी महारानियों सें पूछा पहले तो माता रोहिणी ने बताना उचित नहीं समझा लेकिन वह रानियों के हट ने उन्हें बताने पर मजबूर कर दिया। तो माता रोहिणी ने रानी सुभद्रा से कहा की पहले तो बाहर पहरे पर किसी को बिटा दो ताकि कोई अंदर ना आ सके चाहे बलराम हो या श्री कृष्ण।
Chandan Yatra – चंदन यात्रा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी
People also ask about Ratha Yatra –
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की Ratha Yatra में शामिल होने से व्यक्ति को 100 यज्ञों के बराबर पुण्यफल मिलता है और जीवन से जुड़े तमाम सुखों को भोगता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का आरंभ होता है. ढोल नगाड़ों के साथ ये यात्रा निकाली जाती है और भक्तगण रथ को खींचकर पुन्य लाभ अर्जित करते हैं. Ratha Yatra जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है और पुरी शहर से होते हुए नगर भ्रमण कर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है।
हर साल ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा निकलती है. ये आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है।
रथयात्रा भारत के ओडिशा राज्य के पुरी में आयोजित एक हिंदू त्योहार है।