Shraddha: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को हिंदू धर्म में श्राद्ध के रूप में मनाया जाता है। श्राद्ध का उल्लेख विष्णु वायु मत्स्य आदि पुराणों तथा महाभारत मनुस्मृति जैसे शास्त्रों में भी उल्लेख किया गया है। Shraddha का तात्पर्य अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखना होता है।
आधिकारिक नाम | श्राद्ध |
प्रकार | हिन्दू धर्म |
अनुयायी | भारतीय |
तिथि | आश्विन माह के कृष्ण पक्ष |
आवृत्ति | वार्षिक |
Table of Contents
श्राद्ध करते समय ध्यान रखने वाली बातें –
अपने पूर्वजों का Shraddha करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि आपके द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म खाली ना जाए और पूर्वज भी प्रसन्न हो। ऐसा माना जाता है कि Shraddha में पूर्वज गण देवलोक से पृथ्वी पर आते हैं और अपनी संतान को सुखी और संपन्न रहने का आशीर्वाद देखकर पूर्वज अमावस्या के दिन वापस देव लोग चले जाते हैं। पूर्णिमा से अमावस्या के बीच की अवधि को पितृपक्ष कहते हैं। इन 16 दिनों में लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और तिथि के हिसाब से उनका श्राद्ध करते हैं। शास्त्रों में Shraddha करने के कुछ नियम बताए हैं जिनका पालन करना जरूरी होता है।
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Shraddha के लाभ –
हिंदू धर्म के मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए बेटे का स्थान प्रमुख है। शास्त्रों में लिखा है कि पूर्वजों को Shraddha करने से नरक से मुक्ति मिलती है। एक पूर्वज को नर्क से मुक्ति उसके पुत्र द्वारा ही मिल सकती है। इसीलिए बेटे को ही Shraddha का अधिकार दिया गया है।

श्राद्ध के समय –
Shraddha का अनुष्ठान करते समय दिवंगत प्राणी का नाम वह उसकी गोत्र का उच्चारण किया जाता है। उंगली में पहनने के लिए कुछ की अंगूठी जैसा आकार बनाकर काले तिल से मिले हुए जल से पितरों को तर्पण किया जाता है। माना जाता है कि तिल का दाना 32 किलो स्वर्ण के बराबर होता है। Shraddha को परिवार का बड़ा पुत्र ही करता है। जिस घर में कोई पुत्र ना हो वहां श्राद्ध स्त्रियां करती है। सन्यासी लोग खुद का श्राद्ध अपने जीवन में ही कर लेते हैं। Shraddha में शुभ कार्य नहीं किया जाते। श्राद्ध का समय दोपहर 12:00 से 1:00 के बीच होता है। श्राद्ध का अंश कौआ को खिलाया जाता है।
Shraddha के समय उपयोग में आने वाली चीजें –
श्राद्ध में गाय का दूध या दही काम में लिया जाता है। और गाय का दूध काम में लेते हुए यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गाय को बच्चा हुआ 10 दिन से अधिक होना चाहिए। 10 दिन के भीतर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध गांव के उस Shraddha में नहीं करना चाहिए। Shraddha में अपनी क्षमता के अनुसार चांदी के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए। अगर आपके पास सभी चांदी के बर्तन उपलब्ध ना हो तो कम से कम एक चांदी का गिलास तो उपयोग में लेना ही चाहिए।
पितृ पक्ष में चांदी के बर्तन में पानी देने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भोजन कराने का बर्तन भी अगर चांदी का हो तो उसे सबसे उत्तम माना जाता है। तमिलनाडु में अमावसाई केरल में करीकड़ा बावुबली और महाराष्ट्र में पितृ पंधरवाड़ा अभी नामों से जाना जाता है।
People ask about Shraddha –
पहले प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि करके ईश्वर भजन के पश्चात अपने पूर्वजों का स्मरण करें एवं प्रणाम करे और उनके गुणों को याद करें। अपनी सामर्थ्य के किसी विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित कर भोजन कराएं और उन्हीं से पूर्वजों के लिए तर्पण व Shraddha करें
धर्म शास्त्रों के मुताबिक Shraddha सिर्फ 3 पीढ़ी तक ही किया जाता है.
श्राद्ध में मसूर की दाल, मटर, राजमा, काला उड़द, सरसो और बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए.